धर्म की आड़ में हथियारों की सौदेबाजी! कैसे तुर्किये भारत के करीब बो रहा बारूदी बीज
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धर्म की आड़ में हथियारों की सौदेबाजी! कैसे तुर्किये भारत के करीब बो रहा बारूदी बीज

India-Turkiye Realtions: भारत से करीब चार हजार किमी दूर से कैसे मजहबी थागे से बांधकर बारूद और बर्बादी का यह सामान बेचा जा रहा है. इस रिपोर्ट में आप जानेंगे कि कैसे भारत के बेहद करीब बारूदी बीज बोए जा रहे हैं.

धर्म की आड़ में हथियारों की सौदेबाजी! कैसे तुर्किये भारत के करीब बो रहा बारूदी बीज

Turkey Halal Weapons: आग उगलते, खून बहाते हथियार…सियासत का औजार बनते हथियार…दुनिया का नक्शा बदलने वाले हथियार…मगर बारूद के खेल से जिंदगियां लेने वाले हथियारों में भी.. क्या कुछ हलाल हो सकता है? यह सवाल आपको सुनने में अटपटा लग रहा होगा. मगर अगले कुछ मिनटों में आप समझ जाएंगे कि न तो यह सवाल बेमानी है और न मजहब की चादर से ढंका यह खेल पाक-साफ. 

हमारी ये रिपोर्ट आपको समझाएगी कि भारत से करीब चार हजार किमी दूर से कैसे मजहबी थागे से बांधकर बारूद और बर्बादी का यह सामान बेचा जा रहा है. साथ ही आप जानेंगे कि कैसे भारत के बेहद करीब बारूदी बीज बोए जा रहे हैं. तो चलिए करते हैं शुरुआत किलिज से तलवार तक और भारत की दहलीज पर बारक्ताश की बढ़ती तैनाती तक.. हलाल हथियारों के साजिशी प्लान को समझने की.

जानिए तुर्किये के घातक हथियारों को

हलाल हथियार की इस थ्योरी को हम डिकोड करें उससे पहले जरा इन हथियारों की तस्वीर गौर से जान लीजिए. बायरक्तर TB2 ड्रोन, T129 ATAK हेलिकॉप्टर, S137 पनडुब्बी, KAAN फाइटर प्लेन और ANKA ड्रोन.

इन सब हथियारों पर एक ही छाप है मेड इन तुर्किए और साथ ही यह भारत के आसपास के मुल्कों को कुछ सालों के भीतर बेचे गए हैं. तुर्किए आखिर भारत के करीबी मुल्कों को आखिर क्यों ऐसे खतरनाक हथियार बेच रहा है. 

यदि बेच रहा है तो क्या भारत के सभी पड़ोसी मुल्कों के साथ उसने सौदे किए हैं या उनमें भी कुछ भेद रखा है? और क्या यह सिर्फ कारोबारी सौदे हैं या फिर किसी पुराने साम्राज्यवादी सपने को संदूक से निकालने का प्लान है.

अतीत में चलते हैं पीछे

 इन तमाम सवालों के जवाबों को तलाशने से पहले आपको बीते कुछ सालों की डायरी के चैप्टर देखने होंगे. और साथ ही इतिहास की किताब के पन्ने भी पलटने होंगे.

लेकिन हलाल हथियार की इस पूरी थ्योरी को डिकोड करने के लिए पहले आपको हलाल और इस्लाम धर्म में इसके मायने को समझना होगा. हलाल एक अरबी शब्द है जिसका मतलब है ‘वैध’. 

इस शब्द का इस्तेमाल इस्लामी कानून में अनुमति प्राप्त या जायज़ चीज़ों के इस्तेमाल के लिए होता है. आपने अक्सर हलाल मीट सुना या लिखा देखा होगा. लेकिन अब हलाल थाली से निकलकर डिफेंस डील में दस्तक दे रहा है.

पिछले 2 दशकों से दुनिया में हथियारों की डील में भी हलाल की एंट्री हुई है जिसकी अगुवाई तुर्किये कर रहा है, तुर्किये की रक्षा सौदों को हलाल हथियार नाम दिया जा रहा है तो उसका भी अपना बड़ा आधार है.

मालदीव है पहला चैप्टर

शुरुआत करते हैं सबसे ताजा चैप्टर. मालदीव के साथ का जो इनदिनों भारत से जाने वाले टूरिस्ट की बजाए तुर्किए के हथियारों का बड़ा डेस्टिनेशन बन रहा है. हलाल हथियार का पहला चैप्टर है इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ मालदीव. 

भारत विरोधी मोइज्जू सरकार की सत्ता में ताजपोशी के बाद से ही यह छोटा सा देश भारत-विरोधी जमावड़े की पसंद बनता जा रहा है. चीन के जासूसी जहाज को अपने बंदरगाह पर जगह देने के साथ ही मालदीव अब तुर्किए के विमानवाहक पोत टीसीजी किलानियादा की गस्त को सलामी दे रहा है और मालदीव के आसमान में तुर्किए का बारक्ताश ड्रोन उड़ान भर रहा है.

  • मार्च में ही मालदीव और तुर्किये में रक्षा सौदा हुआ, जिसके तहत तुर्किये ने करीब 6 बारक्ताश ड्रोन मालदीव को बेचे.

  • मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ड्रोन के लिए मालदीव ने तुर्किये को करीब 37 मिलियन डॉलर चुकाए.

तुर्किये और मालदीव के बीच हलाल हथियारों की ये मार्च वाली टाइमिंग बेहद अहम है.10 मार्च को ही भारत के सैनिकों का पहला दस्ता मालदीव से वापस लौटा उससे ठीक पहले विपक्ष में रहते मोइज्जू ने इंडिया आउट की मुहिम शुरू की, मुस्लिम तुष्टीकरण के जरिए सत्ता की सीढ़ी चढ़ी और जब कमान संभाली तो अपने पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों की परंपरा को तोड़ते हुए पहले विदेश दौरे में भारत की बजाय तुर्किये को चुना.

अब दूसरे चैप्टर पाकिस्तान को समझिए

हलाल हथियार का दूसरा चैप्टर है रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान. दुनिया में आज हलाल हथियार की जो डिप्लोमैसी पैर पसार रही है उसके बीज बोने में कहीं ना कहीं पाकिस्तान का भी हाथ है. साल 2020 में इमरान ने सऊदी अरब और ईरान से अलग तुर्किये के नेतृत्व में तीसरा मुस्लिम गुट बनाने की कोशिश की थी लेकिन हलाल हथियारों के मामले में दोनों का गठबंधन पहले से ही मजबूत था.

  • 2014 में पाकिस्तान ने उन्नत किस्म के 4 F16 विमान तुर्किये से खरीदे.

  • 2018 में तुर्किये ने पाकिस्तान को 30 T129 ATAK हेलिकॉप्टर बेचने की डील साइन की थी, जिसकी कीमत करीब 1.5 बिलियन अमेरीकी डॉलर थी. तुर्किये की कंपनी ने अगस्तावेस्टलैंड के साथ मिलकर इस हेलिकॉप्टर को बनाया था.

  •  पिछले साल ही पाकिस्तान ने तुर्किए से S137 PNS KHALID पनडुब्बियां खरीदीं.

  • इसके अलावा 2021 और 2022 पाकिस्तान ने तुर्किये से 3 बारक्ताश ड्रोन भी खरीदे.

  • जब हलाल हथियारों की ये डील लॉक की जा रही थी उसी समय कश्मीर और 370 के मुद्दे पर तुर्किये लगातार पाकिस्तान के पक्ष में बैटिंग कर रहा था.  दुनिया के हर मुद्दे पर हर मंच पर भारत के खिलाफ तलवार लेकर खड़ा था.

बांग्लादेश भी तुर्किये से लेता है हथियार

  • कभी पश्चिमी पाकिस्तान रहा बांग्लादेश भले ही भारत का अच्छा दोस्त हो लेकिन तुर्किये के साथ हलाल हथियारों की सौदेबाजी में भी वो पीछे नहीं है. बांग्लादेश से हथियारों के खरीद फरोख्त में बांग्लादेश चौथे नंबर पर है.

  • साल 2021 के सिर्फ पहले 4 महीनों में ही बांग्लादेश ने तुर्किये से 60 मिलियन डॉलर के हथियार खरीदे.

  • इसके अलावा ड्रोन, शॉर्ट रेंज मिसाइल, रॉकेट डिफेंस सिस्टम, पेट्रोल बोट टेक्नॉलॉजी समेत कई अहम डील भी तुर्किए और बांग्लादेश के बीच हुई.

  • पिछले साल ही 3000 बांग्लादेशी सैन्य अधिकारियों को तुर्किए में ट्रेनिंग भी दी गई.

  • बांग्लादेश लगातार अपने डिफेंस बजट को बढ़ा रहा है और सवाल ये है कि आखिर बांग्लादेश को हथियारों की इतनी जरूरत क्यों है. वो भी तब जब बांग्लादेश सिर्फ भारत और म्यांमार के साथ सीमा साझा करता है, इसमें भी 95 फीसदी से ज्यादा भारत के साथ लगती है.

मलेशिया आया तुर्किये के करीब

  • हलाल हथियार का चौथा चैप्टर है मलेशिया. इसे संयोग कहें या प्रयोग. मगर जैसे जैसे तुर्किये और मलेशिया करीब आए भारत और मलेशिया के रिश्तों में खाई बढ़ने लगी. साथ ही बढ़ने लगे मलेशिया की फौज में मेड इन टर्की हथियार.

  • मलेशिया ने 3 मानव रहित विमान के लिए तुर्किये की टर्किश एयरोस्पेस इंडस्ट्री को चुना.

  • इसके अलावा मलेशिया ने ANKA ड्रोन डील भी तुर्किये के साथ की.

  • तुर्किये और मलेशिया के बीच KAAN फाइटर प्लेन के सौदे पर भी बात चल रही है.

  • तुर्किये और मलेशिया के इस हलाल हथियार सौदों के बीच ये याद दिलाना भी जरूरी है कि भारत के मोस्ट वॉन्टेड जाकिर नाईक को भी मलेशिया ने ही शरण दे रखी है.

इंडोनेशिया से भी बढ़ाई दोस्ती 

हलाल हथियार का पांचवा चैप्टर है इंडोनेशिया. इंडोनेशिया दुनिया की सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला मुल्क है और जाहिर तौर पर इस्लामिक देशों की अगुवाई का ख्वाब देख रहे तुर्किये के राष्ट्रपति अर्दोआन अपने हलाल हथियारों को इंडोनेशिया में भी विस्तार देने की कवायद में हैं और पिछले कुछ सालों से उनकी ये मुहिम रंग भी ला रही है.

  •  बीते 26 मार्च को ही तुर्किये ने इंडोनेशियाई सेना को 10 यूनिट टैंकों की सप्लाई की.

  • पिछले साल ही इंडोनेशिया ने भी तुर्किए से 12 ANKA ड्रोन खरीदे थे.

इसके अलावा अफ्रीकी देशों के साथ भी तुर्किये लगातार हलाल हथियारों के सौदे बढ़ा रहा है, चाहे मोरेक्को हो या जीबूती या फिर सोमालिया और रवांडा, जहां जहां मुस्लिम आबादी है वहां वहां तुर्किए के हथियारों की मौजूदगी बढ़ रही है. 

मुस्लिम जगत का खलीफा बनने की होड़

अर्दोगन ने सत्ता की कुर्सी संभालने के बाद से तुर्किए के इस्लामीकरण और इसकी मजहबी रंगत के सहारे अतीत के ऑटोमन साम्राज्य के पुराने प्रभाव का सपना बुनना तेज कर दिया. वहीं इस सपने के साथ तुर्किए की सत्ता पर काबिज रहने की जहां कोशिश है वहीं अपने चुनिंदा करीबियों को फायदा पहुंचाने का भी पक्का प्लान शामिल है. मगर हथियारों के सहारे अपना और तुर्किए का खजाना भरने की इस जुगत में मुनाफे का मंत्र कितना है और मजहब का ताबीज कितना है?

पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, मलेशिया  इंडोनेशिया और पूर्वी अफ्रीकी देशों में तुर्किए का ये हलाल हथियार भारत के लिए चिंता का सबब है, भारत की इस सामरिक चिंताओं को डिकोड करने के लिए भारत की भौगोलिक स्थिति को समझिए.

क्यों भारत के लिए है टेंशन वाली स्थिति

  • भारत के पश्चिम में पाकिस्तान स्थित है

  • पूरब में बांग्लादेश औऱ दक्षिण छोर हिंद महासागर में मालदीव.

  • पूर्वी ट्रेड रूट मलक्का है जो मलेशिया और इंडोनेशिया में पड़ता है.

  • वहीं पश्चिम ट्रेड रूट में पूर्वी अफ्रीकी देश है

  • और इन सभी देशों में पिछले कुछ वक्त से तुर्किये के हलाल हथियारों का सौदा बढ़ा है. और इन देशों की भौगोलिक स्थिति देखें तो कहीं ना कहीं भारत के लिए ये चिंता का सबब बनता जा रहा है.

क्यों भारत के लिए है खतरनाक

भारत के पड़ोसी मुल्कों में जिस रफ्तार से अर्दोआनी निजाम ने अपने हलाल हथियारों की तैनाती बढ़ाई है उसके मंसूबों पर सवाल उठना लाजमी हैं. खासकर ऐसे में जब कश्मीर से लेकर 370 के मुद्दे पर अर्दोआन सरकार के भारत विरोधी सुर कई मंच पर सुनाई देते रहे हैं, इतना ही नहीं खुद राष्ट्रपति अर्दोआन भी पाकिस्तान के सुर में ताल बिठाते नजर आ चुके हैं.

भारत और तुर्किये के संबंध फिलहाल कैसे हैं?

आर्दोआन का ये भारत विरोधी रवैया तब है जब भारत मुश्किल वक्त में तुर्किये के लोगों के लिए मदद का हाथ बढ़ाता रहा है. जब तुर्किये में आपदा आई थी तबभारतीय सेना के जवान खाद्य सामग्री से लेकर राहत बचाव अभियानों में सबसे आगे खड़े रहे. इस सब के बावजूद अर्दोआन के भारत विरोध की वजह क्या है वो भी जान लीजिए.

आर्दोआन के भारत विरोधी रुख की वजह?

मुस्लिम वर्ल्ड का लीडर बनने के लिए अर्दोआन ऑटोमन साम्राज्य का सपना बेच रहे हैं...और इसी कड़ी में बीच बीच में कट्टर कदम उठाकर दुनियाभर के 1.9 बिलियन यानी करीब 26 फीसदी आबादी को ऑटोमन साम्राज्य की वापसी का संदेश देने में भी कामयाब हो रहे हैं.

साल 2020 में जब अर्दोआन ने 86 साल बाद इतिहास के पन्नों को पलट दिया. हागिया सोफिया को फिर से मस्जिद बनाने का आदेश दिया. 1500 साल पुरानी यूनेस्को की ये विश्व विरासत मस्जिद बनने से पहले चर्च था, जिस पर मस्जिद चर्च की बहस चलती रहती थी और फिर 1930 के दशक में विवाद पर ब्रेक लगाने के लिए इसे म्यूज़ियम बना दिया गया. लेकिन अर्दोआन ने एक बार फिर फैसला पलटकर मस्जिद बना दी और खुद को मुस्लिमों का खलीफा बताने की कोशिश की बाकायदा हागिया सोफिया में आर्दोआन धार्मिक टोपी पहनकर पहुंचे थे.

धर्म की आड़ में हथियारों की सौदेबाजी!

  • एक तरफ धार्मिक कट्टरता के जरिए भले ही अर्दोआन खुद को मुस्लिमों का मसीहा दिखा रहे हैं तो दूसरी तरफ धर्म की आड़ में हलाल हथियारों की सौदेबाजी भी बढ़ा रहे हैं. आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं.

  • हथियार बेचने के मामले में तुर्किये साल 2007 में दुनिया में 20वें नंबर पर था.

  • साल 2016 में 7 पायदान उठकर 13वें नंबर पर पहुंच गया.

  • और फिलहाल तुर्किये दुनियाभर में हथियार बेचने के मामले में 11वें नंबर पर है.

  • यानी धर्म की कट्टर राह पर चलकर अर्दोआन ने अपनी इमेज भी चमकाई और हलाल हथियारों के जरिए पश्चिमी देशों को चुनौती भी दी. धर्म और हथियार के इस सौदे में आर्दोआन के धंधे भी दिन दून रात चौगुनी कर रहे हैं. 

ऑटोमन साम्राज्य का सपना अधूरी आस

तुर्किए में ऑटोमन साम्राज्य के अतीत का सपना आज भी एक अधूरी आस है, जिसे जिंदा रखने की कोशिश सियासतदानों को फायदे का सौदा लगती हैं. करीब सात सौ साल पुराने इतिहास में भारत से करीब चार हजार किमी दूर पैदा हुए इस साम्राज्य की पैदाइश से लेकर विस्तार तक की कहानी में हथियारों का बड़ा योगदान रहा है. 

भारत में हम जिसे तलवार या शमशीर कहते हैं उसकी पैदाइश के मूल में तुर्किए में तैयार किलिज है जो ऑटोमन साम्राज्य के विस्तार के साथ दुनिया के कई इस्लामिक सेनाओं का पसंदीदा हथियार बनी. इतना ही नहीं जानकार मानते हैं कि ऑटोमन साम्राज्य के तेजी से हुए विस्तार की 3 मुख्य वजहें थी.

  • युद्ध में गन पाउडर का इस्तेमाल.

  • तीरंदाज की जगह सिपाहियों को बंदूक दी गई.

  • और तोप का इस्तेमाल करने वाले शुरूआती लोग भी ऑटोमन थे.

और इस तरह हथियारों के हुनर और कारोबार का इस्तेमाल कर दुनिया के बड़े हिस्से पर 600 साल से ज्यादा राज करने वाला इस्लामिक साम्राज्य बना ऑटोमन.

ड्रोन को खरीदने के लिए मची होड़

लिहाजा अतीत का पुराना बेकार पन्ना भर नही होता है इतिहास, बल्कि भविष्य की सीख का दस्तावेज भी होता है. इसलिए भारत से हजारों किलोमीटर दूर तुर्किये की अपने हलाल हथियार की बिक्री के इस प्लान के दूरगामी परिणामों को भारत नजरअंदाज नहीं कर सकता है. उसे सतर्क भी रहना होगा क्योंकि यह प्लान उसके पास-पड़ोस में सबसे अधिक तेजी से पैर पसार रहा है.

हालांकि हलाल हथियारों के इस प्लान के इतिहास-वर्तमान को समझने के साथ ही आपको इस खेल के कुछ अहम किरदारों को भी पहचानना चाहिए. ऐसे ही एक नाम है सेलचुक बैरक्तार.

आज भी दुनियाभर के देश तुर्की के ड्रोन को खरीदने के लिए लाइन लगाकर खड़े हैं. इनमें उन देशों की अधिकता है, जो महंगे पश्चिमी ड्रोन को खरीदने में सक्षम नहीं हैं. 
तुर्की को ड्रोन शक्ति संपन्न देश बनाने के पीछे एक व्यक्ति की भूमिका काफी अहम मानी जा रही है और वो हैं सेल्चुक बारक्ताश. सेल्चुक तुर्किये के राष्ट्रपति रेसेप तैयप अर्दोगन के दामाद भी हैं. सेल्कुक की कंपनी बायकर बायरक्तर टीबी-2 से लेकर अकिंसी तक कई घातक ड्रोन का निर्माण करती है.

इसी दौरान अर्दोआन के कार्यकाल में तुर्किये ने न केवल विदेशी सैन्य आयात पर अपनी निर्भरता को 2004 में लगभग 80 फीसदी से कम करके 2022 में 20 फीसदी कर दिया है. बायरक्तर टीबी2 लड़ाकू ड्रोन के जरिए अपनी अलग धाक बनाई, जिसे 20 से अधिक देशों को बेचा है.

कई जंगों में इन ड्रोनों ने दिखाया जलवा

अजरबेजान और अर्मेनिया युद्ध के दौरान भी ये ड्रोन काफी चर्चाओं में थे, जिन्होंने युद्ध के मैदान में अर्मेनिया के कई बड़े हमलों को नाकाम कर दिया था. अजरबेजान ने तुर्किये की डिफेंस कंपनी बायरक्तर से ही ड्रोन हथियार खरीदे थे.

यही नहीं रूस के खिलाफ जंग में यूक्रेन भी तुर्की के खतरनाक लड़ाकू ड्रोन बायरक्तर टीबी-2 का भी यूज कर रहा है. इस ड्रोन से यूक्रेन ने रूस की तेल से भरी पूरी ट्रेन उड़ा दी. ये ट्रेन रूस की सेना को ईंधन सप्लाई करने जा रही थी. यही नहीं, यूक्रेन मीडिया के मुताबिक इस ड्रोन सिस्टम से खार्कीव के पास रशियन आर्मी के एक पूरे कॉलम को भी तबाह कर दिया गया था.

तुर्किये के ड्रोन की मांग सिर्फ रूस और यूक्रेन जंग तक सीमित नहीं है. खुद को इस्लामिक देशों का खलीफा कहने वाले सऊदी अरब को भी तुर्की के ड्रोन भाने लगे हैं. इसलिए तुर्की की बायरक्तर कंपनी अब सऊदी अरब के लिए भी ड्रोन बना रही है, बाकायदा प्रिसं सलमान और आर्दोआन की मौजूदगी में एग्रीमेंट पर समझौता हुआ है.

क्या इन सौदों में केवल बाजार की जरूरतें हैं?

हलाल हथियार के जरिए आर्दोआन ने युद्ध के जंग में ड्रोन हथियारों का घी झौंक रखा है.यानी मुस्लिम वर्ल्ड को ऑटोमन साम्राज्य का सपना बेचकर आर्दोआन अपनी सियासत और दौलत दोनों चमकाने में जुटे हुए हैं.

अर्दोआन कैसे परिवार के हथियार व्यापार को बढ़ा रहे?

आधुनिक तुर्किये के संस्थापक कहे जाने वाले कमाल अतातुर्क ने  धर्मनिरपेक्ष और राष्ट्रवादी राज्य के रूप में तुर्किये  की नींव रखी थी इस तरह से उस ऐतिहासिक 'दौर-ए-उस्मानिया' के तुर्क साम्राज्य का खात्मा हो गया था जो सैकड़ों सालों से इस्लामी क़ानून के मुताबिक़ चला आ रहा था.

साढ़े आठ करोड़ की आबादी वाले देश तुर्किये 100 साल पूरे कर चुका है  लेकिन कहा जा रहा  है कि पिछले 20 सालों में तुर्की कमाल अतातुर्क का बनाया तुर्किये नहीं रहा बल्कि अर्दोआन के ऑटोमान साम्राज्य के सपने को पूरा करने की सनक में इतिहास दोहराने की कोशिश में जुटा है.

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