Lok Sabha Chunav: चुनाव में नहीं दिखती कार की खिड़की से झांकती 'दोनली', UP में रेस से बाहर हुए माफिया
Advertisement
trendingNow12240926

Lok Sabha Chunav: चुनाव में नहीं दिखती कार की खिड़की से झांकती 'दोनली', UP में रेस से बाहर हुए माफिया

UP Mafia News: लोकसभा चुनाव के लिए वोट डाले जा रहे हैं. तीन चरणों का चुनाव हो चुका है, क्या आपने सोचा है कि यूपी में इस बार कोई माफिया, बाहुबली या गैंगस्टर चुनाव मैदान में नहीं है. हां, पिछले पांच साल में माफिया जेल चले गए या हमेशा के लिए जमींदोज हो गए. 

Lok Sabha Chunav: चुनाव में नहीं दिखती कार की खिड़की से झांकती 'दोनली', UP में रेस से बाहर हुए माफिया

UP Politics: एक दौर था जब सफेद टाटा सूमो से नेताजी का काफिला झम्म से निकलता था और सड़क किनारे खड़े लोगों को कम खुली खिड़की से केवल 'दोनली' के दर्शन होते थे. अंदाज थोड़ा बदल सकता है पर हाल कुछ ऐसा ही था. वह अतीक अहमद रहे हों या मुख्तार अंसारी. उस समय राजनीति में अपराधीकरण पर अखबारों में लंबे लेख लिखे जाते थे लेकिन अगले चुनाव में फिर माफिया, गैंगस्टर और बाहुबली कहे जाने वाले अपराधी टिकट पा जाते थे. इस लोकसभा चुनाव में कम से कम यूपी में सीन बदला हुआ है. माफियाओं पर शिकंजा कसने के बाद वे तेजी से लुप्त हुए हैं. कहा जा रहा है कि यह शायद पहला आम चुनाव है जब माफिया का काफिला दिखाई नहीं दे रहा है. 

जाति-धर्म की पॉलिटिक्स

दशकों से राजनीति में अपराधियों की साठगांठ रही है. सियासी दल अपना फायदा देखते रहे. जाति-धर्म के फैक्टर पर वोट बैंक साधे जाते थे तो माफिया अपने साम्राज्य का विस्तार करते रहते थे. यूपी में इसकी शुरुआत गोरखपुर से मानी जाती है और नाम जेहन में आता है हरिशंकर तिवारी का. 

वेस्ट यूपी की तरफ नजर दौड़ाइए तो डीपी यादव का नाम आगे की पंक्ति में मिलता है. बाद में तो अपराधियों को एंट्री देने की रेस सी लग गई. मुख्तार अंसारी आए, अतीक अहमद जीते, बृजेश सिंह से लेकर विजय मिश्रा का जलवा देखने को मिला. धनंजय सिंह, रिजवान जहीर जैसे नामों ने अपना अलग माहौल बनाया. आज की पीढ़ी को शायद यह फिल्मी कहानी जैसा लगे लेकिन तब हर जिले में एक माफिया की तूती बोलती थी. बुल्डोजर एक्शन से वे खत्म हो गए या जेल में पड़े हैं. 

पहला नाम हरिशंकर तिवारी

हां, यूपी के बड़े डॉन की लिस्ट तैयार की जाए तो पहला बड़ा नाम यही आता है. यूपी में जेल से चुनाव जीतने वाले वह पहले माफिया थे. श्रीप्रकाश शुक्ला पर उनका हाथ था. हरिशंकर तिवारी की छवि बाहुबली नेता की बनी. वह न सिर्फ विधायक बने बल्कि कैबिनेट मंत्री भी बनाए गए. हां, इसमें सभी पार्टियों ने साथ दिया. 

अतीक हो या मुख्तार

फूलपुर लोकसभा सीट हो या इलाहाबाद का चकिया, अतीक अहमद का सिक्का चलता था. उसका नाम ही पुलिस के पैर जमा देता था. सियासी फायदे के लिए पार्टियों ने उसे अपनाया तो दूसरी तरफ अतीक का भी कद बढ़ता गया. एक बड़े इलाके में मुस्लिम वोटरों को साधने के लिए अतीक बड़ा फैक्टर बनता गया. कुछ यही हाल मुख्तार अंसारी का था. उसे भी सियासी दलों ने सिर पर बिठाया. पूर्वांचल में मुस्लिम वोटों को खींचने के लिए मुख्तार का दबदबा बना रहा. हालांकि हाल के महीनों में दोनों माफिया हमेशा के लिए इतिहास बन गए. 

धनंजय सिंह

इस बार बसपा ने पूर्व सांसद धनंजय सिंह की पत्नी को जौनपुर से टिकट दे दिया था. हालांकि जल्द ही टिकट कट गया. पूर्वांचल के बाहुबली धनंजय सिंह हाल ही में जेल से रिहा हुए थे. उन पर एक दर्जन से ज्यादा केस दर्ज हैं. अब वह चर्चा में कम ही रहते हैं. 

विजय मिश्र

आज यह नाम कोई नहीं लेता. अखबारों में सिर्फ कार्रवाई की खबरें आती हैं. उनके समर्थक भी मुंह मोड़ चुके हैं. एक समय इलाहाबाद, भदोही, बनारस में विजय मिश्र का जलवा होता था. हत्या, वसूली जैसे कई मामलों में घिरे विजय मिश्र सपा में भी रहे. ज्ञानपुर से विधायक रहे विजय मिश्र को रेप केस में पिछले साल 15 साल की सजा हुई. एक गायिका ने आरोप लगाया था कि उसके साथ विजय मिश्र ने कई बार रेप किया था. बाद में गैंगस्टर की दुर्गति शुरू हो गई. 

बृजेश सिंह

दो साल पहले खबर आई कि 13 साल बाद माफिया बृजेश सिंह बनारस सेंट्रल जेल से रिहा हुआ. उसके खिलाफ दो दर्जन से ज्यादा केस दर्ज हैं. इसमें सामूहिक हत्या और अपहरण का मामला शामिल है. अब वह सीन से बाहर है. 

यूपी में आजमगढ़ से रमाकांत यादव हों या पश्चिम यूपी में शराब माफिया डीपी यादव और गैंगस्टर से नेता बने अमरमणि जैसे नाम इस बार लोकसभा चुनाव में सुनाई नहीं दे रहे हैं. हाल यह है कि चुनाव के ऐलान से ठीक पहले 74 हिस्ट्रीशीटर यूपी के थानों में खुद जाकर सरेंडर कर आए और अपराध से तौबा कर ली. 

Trending news