क्या है रूबेला संक्रमण, गर्भवती महिलाओं में क्यों होता है इसका सबसे ज्यादा खतरा ?
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क्या है रूबेला संक्रमण, गर्भवती महिलाओं में क्यों होता है इसका सबसे ज्यादा खतरा ?

रुबेला वायरस' जिसे जर्मन मीज़ल्स भी कहा जाता है प्रेगनेंसी के दौरान एक महिला के बेहद चिंता का कारण बन सकता है और अगर प्रेगनेंट महिला रुबेला वायरस से संक्रमित होती है, तो इससे उसके  बच्चे पर काफी गहरा असर हो सकता है. यह वायरस बच्चे के दिमाग, आंखों, कान, जीभ और हड्डियों को प्रभावित कर सकता है, जिसे संगणनीय रुबेला सिंड्रोम (CRS) कहा जाता है.

क्या है रूबेला संक्रमण, गर्भवती महिलाओं में क्यों होता है इसका सबसे ज्यादा खतरा ?

महिलाओं के लिए प्रेगनेंसी एक बेहद ही अनोखा और जिंदगी बदल देने वाला अनुभव  होता है. यह एक ऐसा वक्त होता है, जब एक महिला के शारीर में कई तरह के परिवर्तन होते हैं. और इसी वक़्त उसका शरीर बेहद कमज़ोर भी होता है. इस वक़्त उन्हें कई बीमारियों के होने का खतरा भी काफी बढ़ जाता है. इसीलिए, आजकल गर्भवती महिलाओं में रूबेला वायरस का प्रकोप काफी देखा जा रहा है. हैरान करने वाली बात ये है कि आमतौर पर ऐसी बीमारी के जो लक्षण होते हैं, आजकल गर्भवती महिलाओं में उनमे से कोई भी लक्षण नहीं दिखते हैं. मगर वो इस घातक वायरस से संक्रमित होती हैं, तो इस में ये समझना बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है की आखिर क्या है ये रूबेला वायरस और गर्भवती महिलाओं के लिए सतर्क रहेना क्यों है बेहद ज़रूरी ?
क्या होता है रूबेला?
जर्मन मीज़ल्स, जिसे हम आज रूबेला के तौर से जानते हैं, एक ऐसा वायरल संक्रमण है जिसके परिणामस्वरूप दाने और हल्के फ्लू जैसे लक्षण होते हैं. रूबेला उन मामलों में भी दूसरों में फैल सकता है, जहां संक्रमित लोगों में से अधिकतर लोगों को किसी भी तरह के कोई लक्षण नहीं दिखते हैं. उन्हें यह भी पता नहीं होता है कि उन्हें यह बीमारी है.आमतौर पर यह बीमारी 5 से 9 साल की उम्र के बच्चों में देखी जाती है. इसकी और यह संक्रमण छोटे लाल उभार या चकत्ते, सूजी हुई ग्रंथियों और हल्के बुखार जैसे लक्षणों से शुरू होता है, जो कुछ दिनों के बाद अपने आप ही ठीक भी हो जाता है. साल 1960 के दशक में रूबेला वैक्सीन की शुरुआत के बाद, इसके मामलों की संख्या में गिरावट देखी गयी. साल 2004 में रूबेला को अमेरिका से समाप्त घोषित कर दिया गया था. हालाँकि, इस बीमारी की चपेट में अभी भी बिना टीकाकरण वाले लोग आ जाते  हैं, जो ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय यात्रा करके वापस लौटे होते हैं.

क्या होते हैं इसके लक्षण?
आमतौर पर, रूबेला के लक्षण माइल्ड होते हैं, जिसमें फ्लू जैसे लक्षण दिखाई देते हैं.  बाद में गुलाबी या हल्के लाल चकत्ते पड़ जाते हैं. और ये दाने शरीर के अन्य हिस्सों में जाने से पहले चेहरे पर शुरू होते हैं. दाने की अवधि तीन दिन की होती है. इन लक्षणों के अलावा इसके और मुख्य लक्षणों में सिरदर्द, गला खराब होना, आँख आना, जी मिचलाना, बुखार आना और ग्रंथियों का सूजना भी शामिल है. रूबेला के कारण ग्रंथियों में सूजन आमतौर पर गर्दन या कान के पीछे पाई जाती है.

प्रेगनेंसी में रूबेला क्या है और क्यूँ होता है घातक?
रूबेला प्रेगनेंट महिला और उसके बच्चे के लिए बहुत खतरनाक माना जाता है. खासतौर से पहेले ट्राइमेस्टर में अगर प्रेगनेंट महिला रूबेला से संक्रमित हो जाती है, तो उसके बच्चे को congenital rubella syndrome होने का बहुत बड़ा जोख़िम होता है. Congenital rubella syndrome (CRS) एक ऐसी बीमारी है, जो रूबेला वायरस से संक्रमित हुई प्रेगनेंट महला के गर्भ में पल रहे बच्चे में होती है . जिन प्रेगनेंट महिलाओं को रूबेला हो जाता है, उनमें गर्भपात,प्री मैच्योर दिलिवेरी या मृत बच्चे को जन्म देने का खतरा होता है, और उनके विकासशील शिशुओं में गंभीर बर्थ डीफेक्ट्स होने की काफी गहरी सम्भावना होती है .सीआरएस बच्चे के शरीर में लगभग हर चीज को प्रभावित कर सकता है.
सीआरएस से सबसे आम बर्थ डीफेक्ट्स में बहरापन, मोतियाबिंद, हृदय रोग, इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी, लीवर और स्प्लीन में डैमेज, जन्म के समय कम वजन तथा जन्म के समय त्वचा पर दाने हैं. इसके कम आम लक्षणों में आंख का रोग(Glaucoma),ब्रेन डैमेज,  थायराइड और अन्य हार्मोन संबंधी समस्याएं और फेफड़ों की सूजन जैसी समस्याएँ शामिल है. 

क्या है रूबेला IGG और IGM?
रूबेला का निदान आमतौर पर रूबेला आईजीएम और आईजीजी की मात्रात्मक इम्यूनोपरख ( quantitative immunoassay) पर आधारित होता है. रूबेला परीक्षण का उपयोग रक्त में एंटीबॉडी का पता लगाने के लिए किया जाता है, जो रूबेला वायरस के कारण होने वाले संक्रमण के जवाब में शरीर की इम्यून सिस्टम द्वारा उत्पादित होते हैं. आमतौर पर रूबेला एंटीबॉडी के 2 प्रकार हैं: IGG और IGM. वायरस के संपर्क में आने के बाद, रूबेला आईजीएम एंटीबॉडी रक्त में दिखाई देती हैं. संक्रमण के लगभग 7-10 दिनों के बाद, प्रोटीन का स्तर बढ़ता है और अपने चरम पर होता है . जो की रक्त में कई हफ्तों तक रहता है और फिर कम होने लगता है. जब मां के शरीर में रूबेला वायरस प्रवेश करता है, तो आईजीजी एंटीबॉडी दिखाई देंगी. हालाँकि, आईजीजी एंटीबॉडी आईजीएम की तुलना में बाद में दिखाई देतीं हैं. मगर यह जीवन भर रक्त में रहती हैं, जिससे मां के शरीर को रूबेला वायरस के कारण होने वाले संक्रमण से लड़ने में मदद मिलती है. रक्त में IgM एंटीबॉडीज़ से संकेत मिलता है कि संक्रमण हो गया है. यदि आईजीजी एंटीबॉडी मौजूद हैं तो हालिया या पिछले रूबेला संक्रमण की साइट का संकेत मिलता है.

प्रेगनेंट महिलाओं के लिए रूबेला आईजीजी पॉजिटिव का क्या मतलब है?
अगर प्रेगनेंट माँ प्रेगनेंसी में रूबेला आईजीजी टेस्ट करवाती है और परीक्षण नकारात्मक आता है, तो इसका मतलब यह है कि माँ संक्रमण से बची हुई नहीं है. अगर संक्रमण होता है तो इस मामले में, वायरस गर्भ में मां से बच्चे तक पहुंच सकता है. शुरुआती 3 महीनों के दौरान इसका जोखिम सबसे अधिक होता है. रूबेला वायरस शारीर में तब फैलता है,  जब एक प्रेगनेंट  महिला किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आई है, जो छींकता या खांसता है और कीटाणुओं को सतहों और हवा में फैलाता है. ऐसे वायरस के कुछ लोगों को तुरंत लक्षण नहीं दिखते, जिससे वे संक्रमित होने और आसपास वायरस फैलने के बारे में अनजान रहते हैं. अगर IgM परिणाम नकारात्मक हैं और IgG सकारात्मक है, तो इसका मतलब यह है कि आपको परीक्षण से कम से कम 10 सप्ताह पहले रूबेला संक्रमण हुआ है. आपने IgG एंटीबॉडी सुरक्षित कर ली है. अगर  2 सप्ताह के अंतर पर परीक्षण के बाद आईजीजी स्तर बढ़ता है, तो इसका मतलब है कि आपको पहले रूबेला संक्रमण हुआ था या टीका लगाया गया था. अगर आईजीजी का स्तर कम है, तो रोगी को रूबेला हो सकता है. रूबेला आईजीएम और आईजीएम परीक्षण 1 सप्ताह के बाद किया जाना चाहिए. अगर आईजीएम सकारात्मक है और आईजीजी का स्तर बढ़ा हुआ है, तो रोगी को तीव्र रूबेला है.

क्या प्रेगनेंसी के दौरान में अपने बच्चे को रूबेला दे सकती हूं?
सरल शब्दों में इसका जवाब है हाँ, और एस बात को सुनिश्चित करना कि आप रूबेला से प्रतिरक्षित हैं या नही तो एक बार इस बात का ज़रूर पता लगाए की बचपन में आपको रूबेला का वैक्सीन लगी है या नही ?  अगर आप प्रेगनेंसी प्लान कर रही हैं,  तो पहले ही अपने डॉक्टर से बात करके अपने शरीर में रूबेला से बचाव के लिए ब्लड टेस्ट करवा ले और पहले ही वैक्सीन भी लगवा लें. अगर आप रूबेला से प्रतिरक्षित नहीं हैं, तो अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए आप ये कर सकते हैं:

1- प्रेगनेंसी से पहेले: खसरा, कण्ठमाला और रूबेला (एमएमआर) का वैक्सीन लगवाएं और वैक्सीन लगवाने के बाद प्रेगनेंट होने का प्रयास करने से पहले 1 महीने तक की प्रतीक्षा करें.

2- प्रेगनेंसी के दौरान: यह सुनिश्चित करने के लिए कि आप रूबेला से प्रतिरक्षित हैं, आपका प्रिनाटेल टेस्ट किया जा सकता है. यदि आप प्रतिरक्षित नहीं हैं, तो प्रेगनेंसी के दौरान एमएमआर वैक्सीन की सिफारिश नहीं की जाती है. लेकिन रूबेला से संक्रमित होने से बचने के लिए आप कुछ चीजें कर सकते हैं.  संक्रमित व्यक्तियों से दूरी बनाये रखें और  अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति के संपर्क में रहे हैं जो बीमार है और उसे रूबेला हो सकता है तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें.

3- प्रेगनेंसी के बाद: जन्म देने के बाद एमएमआर वैक्सीन ज़रूर लगवाएं. आपको बता दें कि ब्रेस्ट फीडिंग के दौरान ये एमएमआर वैक्सीन लगवाना सुरक्षित है. वैक्सीन लगने के 12 तक बाद तक बच्चे में संक्रमण का खतरा नही रहता है, लेकिन 12 महीने के बाद बच्चे को भी  एमएमआरममर वैक्सीन लगवाना ज़रूरी है .वैक्सीन आपको भविष्य में भी  प्रेगनेंसी के दौरान आपके बच्चे को रूबेला से संक्रमित होने से भी रोकता है.

क्या है इसका ट्रीटमेंट?
रूबेला के इलाज के लिए कोई विशिष्ट दवा नहीं है और  कई मामलों में बीमारी के लक्षण हल्के ही होतें  हैं.  आराम करना, फ्लुइड्स लेना और बुखार कम करने वाली दवाएं लेने से इसके लक्षणों में आमतौर पर मदद मिल जाती है. रूबेला से पीड़ित प्रेगनेंट लोगों के लक्षणों से राहत पाने के लिए उनका इलाज एसिटामिनोफेन से किया जा सकता है. अधिक गंभीर मामलों में, उपचार में ब्लड tranfusion या स्टेरॉयड भी शामिल हो सकते हैं. 

Congenital rubella syndrome का ट्रीटमेंट क्या है?
Congenital rubella syndrome के इलाज के तरीके इसकी गंभीरता पर निर्भर करते हैं और कुछ स्थितियों का इलाज दवा या सर्जरी से संभव हो सकता है मगर आमतौर पर CRS का डैमेज परमानेंट होता है और उस डैमेज को ट्रीट किया जा सकता और बस जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए स्थिति का प्रबंधन करना ही संभव है

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