1907 में हैवरहिल, मैसाचुसेट्स के एक डॉक्टर डंकन मैकडॉगल द्वारा आत्मा के वजन को मापने के लिए एक वैज्ञानिक अध्ययन किया गया था.
मैकडॉगल का मानना था कि आत्माओं का वजन होता है, और जब आत्मा शरीर छोड़ती है तो मनुष्य द्वारा खोया गया वजन ही आत्मा का वजन होता है.
मैकडॉगल और उनके कुछ साथियों ने अपने अध्यन के लिए छह मर रहे रोगियों को विशेष रूप से बनाए गए तराजू पर रखा और उनके मृत्यु के समय पर बड़े पैमाने पर परिवर्तन को मापने का प्रयास किया था.
रिपोर्ट्स में बताया गया है कि रिसर्च के दौरान छह मृत लोगों में से एक ने तीन-चौथाई औंस यानि, 21.3 ग्राम वजन खो दिया था. हैरान करने वाली बात यह थी कि वजन में कमी सभी मुर्दों में देखि गई, लेकिन सब का वजन अनुपात अलग था. आखिर में रिसर्च कर रहे डॉक्टरों ने निष्कर्ष निकला कि आत्मा का वजन 21 ग्राम होता है.
अपने छह रोगियों का वजन करने के बाद, मैकडॉगल 15 कुत्तों पर काम करने चले गए. यह स्पष्ट नहीं है कि 15 मरते हुए कुत्ते उनके हाथ कैसे लगे, लेकिन जब उनकी मृत्यु हुई तो उन्होंने पाया कि उनके वजन में कोई कमी नहीं आई थी.
चिकित्सक ऑगस्टस पी. क्लार्क ने मैकडॉगल के अध्यन की मान्यता की आलोचना की. क्लार्क ने कहा कि मृत्यु के समय शरीर के तापमान में अचानक वृद्धि होती है क्योंकि फेफड़े रक्त को ठंडा नहीं कर पाते, जिससे बाद में पसीने में वृद्धि होती है जो आसानी से 21 ग्राम की कमी का कारण बन सकता है.
क्लार्क ने यह भी बताया कि, चूंकि कुत्तों में पसीने की ग्रंथियां नहीं होती हैं, इसलिए मृत्यु के बाद उनका वजन इस तरह से कम नहीं होगा.
मैकडॉगल के प्रयोग को वैज्ञानिक समुदाय ने अस्वीकार कर दिया था और उन पर परिणाम प्राप्त करने में त्रुटिपूर्ण तरीकों और धोखाधड़ी दोनों का आरोप लगाया गया था.
रिपोर्ट्स के मुताबिक 1911 में मैकडॉगल आत्माओं की तस्वीरें लेना चाहते थे, लेकिन उन्होंने इस क्षेत्र में कोई और रिसर्च जारी नहीं की और 1920 में उनकी मृत्यु हो गई, जिसके बाद इस प्रयोग को दोहराया नहीं गया है.