Tara Devi Temple: शिमला के इस मंदिर में पूरी होती है हर मनोकानमा, स्वर्ग की देवी मां तारा करती हैं वास
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Tara Devi Temple: शिमला के इस मंदिर में पूरी होती है हर मनोकानमा, स्वर्ग की देवी मां तारा करती हैं वास

Tara Devi Temple: देवभूमि हिमाचल में कई शक्तिपीठ मौजूद हैं. यहां ऐसे कई मंदिर हैं जहां आज भी कई देवी-देवताओं का वास माना जाता है. इन्हीं में से एक है शिमला स्थित तारा देवी मंदिर, जिसका इतिहास बेहद रोचक है.   

 

Tara Devi Temple: शिमला के इस मंदिर में पूरी होती है हर मनोकानमा, स्वर्ग की देवी मां तारा करती हैं वास

Tara Devi Temple Shimla: पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश अपनी प्राकृतिक व अलौकिक सुदंरता के लिए विश्वभर में अलग पहचान बनाए हुए है. यहां घूमने के लिए कई टूरिस्ट प्लेस हैं. नदियां, झील, झरने और पहाड़ यहां आने वाले पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं और ना सिर्फ झील-झरने, बल्कि हिमाचल प्रदेश इकलौत ऐसा राज्य है जहां कई शक्तिपीठ और कई प्राचीन मंदिर हैं जो विश्वभर में प्रसिद्ध हैं. जहां आज भी कई देवी-देवताओं का वास माना जाता है. 

सदियों से लोगों की आस्था का केंद्र है तारा देवी मंदिर
ऐसे में हम बात करते हैं प्रदेश की राजधानी शिमला के तारा देवी मंदिर की, जो शिमला के शोघी इलाके की ऊंची पहाड़ी पर स्थित है. इस मंदिर में स्वर्ग की देवी मां तारा का वास है. दुनियाभर के अलग-अलग क्षेत्रों से भक्त मां तारा देवी के दर्शनों के लिए यहां पहुंचते हैं. मान्यता है कि जो भी भक्त मां तारा देवी के दरबार पहुंचता है उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है. यह मंदिर सदियों से लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. 

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समुद्र तल से 1 हजार 851 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है तारा देवी मंदिर
बता दें, तारा देवी मंदिर शिमला से करीब 18 किलोमीटर दूर और समुद्र तल से 1 हजार 851 मीटर की ऊंचाई पर शोघी की पहाड़ी पर स्थित है. श्रद्धालुओं के लिए मंदिर तक पहुंचने के लिए बेहतर सड़क सुविधा है, लेकिन कुछ भक्त यहां की खूबसूरत वादियों को निहारते हुए ट्रैकिंग करके मंदिर पहुंचते हैं. कहा जाता है कि तारा देवी दुर्गा मां की नौवीं बहन हैं. तीन स्वरूप हैं. इनकी पूजा हिंदू धर्म ही नहीं बल्कि बौद्ध में भी की जाती है. 

250 साल पुराना है मां तारा देवी का इतिहास
बता दें, तारा देवी मंदिर का इतिहास करीब 250 साल पुराना है. इस मंदिर से जुड़ी एक कहानी भी बहुत प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि कई वर्षों से पहले बंगाल के सेन राजवंश के राजा भूपेंद्र सेन शिमला आए थे. एक दिन वह यहां के घने जंगल में शिकार के लिए निकल गए. पूरा दिन बीत जाने के बाद जब उन्हें थकान महसूस हुई तो सो गए. 

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यह है मां तारा देवी मंदिर की कहानी
इस दौरान सपने में राजा ने मां तारा को देखा और उनके साथ भगवान हनुमान और भैरव को देखा. राजा ने देखा कि मां तारा के द्वारपाल श्री भैरव और भगवान हनुमान अनावरण कर रहे हैं. इस सपने के बाद जब राजा की आंख खुली तो राजा ने अपनी 50 बीघा जमीन दान करके उस पर मंदिर निर्माण कार्य शुरू करा दिया. मंदिर का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद वैष्णव परंपरा के अनुसार, मां तारा देवी की लड़की से बनी मूर्ति को मंदिर में स्थापित कर दिया गया.

कुछ समय बीत जाने के बाद राजा भूपेंद्र सेन के वंशज बलवीर सेन ने भी मां तारा देवी को सपने में देखा. इसके बाद बलवीर सिंह ने अष्टधातु से बनी मां तारा देवी की मूर्ति को मंदिर में स्थापित करवाया और फिर पूरी तरह माता तारा देवी मंदिर का निर्माण कराया गया. तब से ही मां तारा की पूजा की जाने लगी.  

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7 मई 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने किए गए थे मां तारा देवी के दर्शन
बता दें, देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू 4 मई को पांच दिवसीय दौरे पर शिमला आईं थी. इस दौरान वह 7 मई को तारादेवी मंदिर में दर्शनों के लिए पहुंचीं थीं. इस मौके पर तारादेवी मंदिर कमेटी की तरफ से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया था. इस दौरान हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल भी मौके पर मौजूद थे. द्रौपदी मुर्मू ने अपने परिवार के साथ मंदिर में भंडारा भी ग्रहण किया था. 

 

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