राम सेतु और गोवर्धन पर्वत का भी है एक सुदंर किस्सा, इंद्रेश जी महाराज ने सुनाया

इंद्रेश उपाध्याय

युवा कथावाचक श्री इंद्रेश उपाध्याय जी भागवत जी को युवाओं के बीच नई ऊंचाइयों पर ले जा रहे हैं. इंद्रेश जी का कथा सुनाने का अंदाज वैष्णव जनों को प्रभावित करता है.

भागवत भास्कर ठाकुर जी के पुत्र हैं इंद्रेश उपाध्याय

भागवत भास्कर परम पूज्य श्री कृष्ण चंद्र शास्त्री (ठाकुर जी) महाराज के सुपुत्र हैं पूज्य आचार्य इंद्रेश उपाध्याय जी. उनके अच्छी खासी फॉलोइंग है. इंद्रेश जी को इंस्टाग्राम पर लगभग 5 लाख फॉलोअर्स हैं.

कथा के बीच सुनाया एक किस्सा

इंद्रेश जी की देश के कोने-कोने में लोगों को कथा का सुख प्रदान करते हैं. ऐसे ही एक कथा के बीच उन्होंने राम सेतु से जुड़ा एक खास किस्सा सुनाया.

राम सेतु क्या है?

सीता जी को लंकापति रावण छल से अपने साथ ले गया. तब श्रीराम भगवान ने लंका पर चढ़ाई शुरू की, लेकिन समुद्र को पार करने के लिए पुल बनाना था. बस तभी का है गोवर्धन पर्वत का किस्सा.

राम सेतु और गोवर्धन पर्वत का किस्सा

इंद्रेश जी कहते हैं जब सेतु बनाने के लिए पर्वत की जरूरत थी तो तब खुद हनुमान जी हिमालय से गोवर्धन पर्वत को उठाकर ले जाने लगे.

गोवर्धन पर्वत क्या है?

गोवर्धन पर्वत ही गोवर्धन नाथ, गिरिराज जी के रूप में बृज के गोवर्धन क्षेत्र में विराजमान हैं. तो जब हनुमान ने गोवर्धन पर्वत को उठाया तो गिरिराज जी बोले, आप हमें हमारे परिवार (हिमालय) से दूर कर रहे हैं.

राम का काम

तब हनुमान जी बोले, भगवान राम के तुम काम आ रहे हो, ये अच्छी बात है. लेकिन इतने में आदेश आया है कि सेतु तैयार हो गया है. अब जो पर्वत जहां है वहीं रख दो. और उस समय हनुमान जी बृज के ऊपर से जा रहे थे.

गोवर्धन महाराज गुस्सा हो गए

गोवर्धन जी बोले- राम के पास नहीं ले जा रहे और ऐसे जंगल में छोड़ दिया. तब हनुमान जी ने राम जी को ये बात बताई.

द्वापर युग में मिला फल

राम जी ने कहा कि द्वापर युग ये पर्वत मेरे समान होगा. जो कि है भी. द्वापर युग में कृष्ण आए और गोवर्धन पर्वत को खुद उठाया व आज दोनों को समान मानकर पूजा की जाती है.

(Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Bharat इसकी पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.)