राजनीतिक इतिहास बताता है कि राजस्थान की जनता बाहरी नेताओं को खूब पसंद करती है. तमाम बाहरी नेताओं को कई बार चुन चुकी है.
60 के दशक में ही ये दिख गया था कि राजस्थानी जनता को बाहरियों से परहेज नही है. बंगाल से नाता रखने वाले सुरेंद्र कुमार डे यहां से चुनाव जीते थे.
सुरेंद्र कुमार डे देश के पहले पंचायती राज मंत्री थे. वह राजस्थान के नागौर से चुनाव जीतकर 1962 में संसद पहुंचे थे.
पंजाब से आने वाले बूटा सिंह को भी राजस्थानियों ने पसंद किया. बूटा सिंह को जालोर की जनता ने तीन बार सांसद चुना.
बूटा सिंह आठवीं, दसवीं बारहवीं और तेरहवीं लोकसभा में चुनाव जीते. बूटा सिंह तीन बार कैबिनेट मंत्री भी रहे.
पंजाब के ताल्लुक रखने वाले बलराम जाखड़ ने तो एक नहीं बल्कि राजस्थान की दो सीटों से चुनाव जीता. वह अकेले ऐसे बिरले नेता रहे.
बलराम जाखड़ दो बार सीकर से और एक बार बीकानेर से सांसद बने. बलराम जाखड़ 1991 से 1996 तक कैबिनेट मंत्री भी रहे थे.
हरियाणा के लाल चौधरी देवीलाल भी राजस्थान वालों को खूब पसंद आए थे. चौधरी देवीलाल, बलराम जाखड़ को हराकर सांसद बने थे.
चौधरी देवीलाल वीपी सिंह की गवर्मेंट में 1989 से 1991 तक उपप्रधानमंत्री रहे थे. सीकर से चुनकर चौधरी देवीलाल संसद पहुंचे थे.
सचिन पायलट के पापा राजेश्वर प्रसाद विधूड़ी का यूपी से ताल्लुक था. जब वह राजस्थान गए तो विरोध हुआ. फिर संजय गांधी से मामले को सुलझाया था.
संजय गांधी ने राजेश्वर प्रसाद विधूड़ी के कहने पर उन्होंने अपना नाम बदलकर राजेश पायलट रखा. और फिर चुनाव लड़ने पर भरतपुर से सांसद बने.