Shaniwar ke Upay: शनिदेव के इस स्तोत्र का करें पाठ, खोया हुआ धन-दौलत; इज्जत-शोहरत मिलेगी वापस
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Shaniwar ke Upay: शनिदेव के इस स्तोत्र का करें पाठ, खोया हुआ धन-दौलत; इज्जत-शोहरत मिलेगी वापस

Shaniwar ke Upay: आज शनिवार है. यह दिन शनिदेव को समर्पित होता है. ऐसे में आज के दिन शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए इस स्तोत्र का पाठ करने से आपको लाभ मिल सकता है. 

 

Shaniwar ke Upay

Shaniwar ke Upay: आज आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि है. आज दिन शनिवार है. सनातन धर्म में यह दिन न्याय के देवता कहे जाने वाले शनिदेव को समर्पित है. इस दिन शनिदेव की उपासना का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस दिन शनिदेव की पूजा करने और सच्चे मन से अराधना करने पर उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है. मान्यताओं के मुताबिक, शनिदेव अगर नाराज हो जाएं तो व्यक्ति के जीवन की सुख-शांति भंग होने लगती है. वहीं अगर शनि महाराज प्रसन्न हैं तो जातक को हर कष्ट से मुक्ति मिल जाती है. न्याय के देवता को प्रसन्न करने के लिए लोग पूजा-पाठ और तरह-तरह के उपाय-टोटके करते हैं. ऐसे में आज हम आपको एक स्तोत्र बताने जा रहे हैं, जिसके जरिए आप शनिदेव को प्रसन्न कर सकते हैं. इसका नाम श्रीशनि एवं शनिभार्या स्तोत्र है. 

श्रीशनि एवं शनिभार्या स्तोत्र का महत्व
श्रीशनि एवं शनिभार्या स्तोत्र एक दुर्लभ पाठ माना गया है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, शनि महाराज के अन्य स्तोत्रों के साथ अगर इस दुर्लभ स्तोत्र का पाठ करें तो खोया हुआ साम्राज्य भी दोबारा हासिल किया जा सकता है. कहते हैं कि राजा नल ने भी इसी श्रीशनि एवं शनिभार्या स्तोत्र का नियमानुसार पाठ किया और अपना छीना हुआ साम्राज्य वापस पा लिया. इस तरह से उनके साम्राज्य में राजलक्ष्मी ने दोबारा कदम रखा.

श्रीशनि एवं शनिभार्या स्तोत्र 

यः पुरा राज्यभ्रष्टाय नलाय प्रददो किल।

स्वप्ने सौरिः स्वयं मन्त्रं सर्वकामफलप्रदम्।।1।।

क्रोडं नीलांजनप्रख्यं नीलजीमूत सन्निभम्।

छायामार्तण्ड-संभूतं नमस्यामि शनैश्चरम्।।2।।

ऊँ नमोऽर्कपुत्रायशनैश्चराय नीहार वर्णांजननीलकाय ।

स्मृत्वा रहस्यं भुवि मानुषत्वे फलप्रदो मे भव सूर्यपुत्र ||3||

नमोऽस्तु प्रेतराजाय कृष्ण वर्णाय ते नमः ।

शनैश्चराय क्रूराय सिद्धि बुद्धि प्रदायिने ||4||

य एभिर्नामभिः स्तोति तस्य तुष्टो भवाम्यहम्

मामकानां भयं तस्य स्वप्नेष्वपि न जायते ।। 5।।

गार्गेय कोशिकस्यापि पिप्पलादो महामुनिः ।

शनैश्चर कृता पीड़ा न भवति कदाचनः।।6।।

क्रोडस्तु पिंगलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोऽन्तको यमः ।

शौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संयुतः ।।7।।

एतानि शनि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत् ।

तस्य शोरे: कृता पीड़ा न भवति कदाचन ।।8।।

।।शनिभार्या नमामि - Shanibharya Namami

(शनि पत्नी के दस नाम)

ध्वजनी धामनी चैव कंकाली कलहप्रिया ।

क्लही कण्टकी चापि अजा महिषी तुरंगमा ।।9।।

नामानि शनि-भार्यायाः नित्यं जपति यः पुमान्।

तस्य दु:खा: विनश्यन्ति सुखसोभाग्यं वर्द्धते ।।10।।

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