Lok Sabha Chunav 2024: बसपा कोर वोटर को पाले में रखने की है. इसके लिए नई रणनीति पर काम कर रही है. क्योंकि कोर वोटर खिसकने का यह दांव कामयाब नहीं हुआ तो वापसी करना मुश्किल होगा. बसपा ने 2007 वाली सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला अपनाया है.
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Lok Sabha Chunav 2024: लोकसभा चुनाव में गठबंधन के दौर में बसपा एकला चलो की राह पर है. पार्टी की कोशिश अपने कोर वोटर को पाले में रखने की है. इसके लिए नई रणनीति पर काम कर रही है. क्योंकि कोर वोटर खिसकने का यह दांव कामयाब नहीं हुआ तो वापसी करना मुश्किल होगा. बसपा ने 2007 वाली सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला अपनाया है.
जातीय समीकरण का ध्यान
बसपा प्रमुख ने टिकट बंटवारे में जातीय समीकरण का ध्यान रखा है. बसपा अब तक सूबे की 78 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार चुकी है. इनमें मुस्लिमों को 20, ओबीसी को 20 टिकट और सवर्णों को 20 टिकट दिए हैं, इनमें 12 ब्राह्मण चेहरे शामिल हैं. इसके अलावा पार्टी ने 17 सीटों पर एससी प्रत्याशी उतारे हैं.
खिसक रहा वोटबैंक
बीते चुनावों के आंकड़े देखें तो बसपा का वोटबैंक लगातार गिरा है. 2014 लोकसभा चुनाव में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी. पार्टी को 19.77 फीसदी वोट मिले थे. वहीं, 2019 में सपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने पर बसपा ने 10 सीटों पर परचम लहराया, लेकिन वोट प्रतिशत घटकर 19.43 प्रतिशत हो गया. 2022 विधानसभा चुनाव में भी बसपा का प्रदर्शन बेहद खराब रहा. पार्टी का केवल एक विधायक ही विधानसभा पहुंच पाया और पार्टी का वोट प्रतिशत गिरकर 12.8 प्रतिशत पर आ गया. निकाय चुनाव में भी बसपा का प्रदर्शन बेहद खराब रहा.
बदली चुनावी रणनीति
चुनाव दर चुनाव बसपा के खिसकते जनाधार को देखते हुए बसपा प्रमुख मायावती ने नए सिरे से रणनीति को तैयार करना शुरू कर दिया. पहले मायावती की चुनावी रैली और जनसभाएं प्रमुख सीटों पर ही होती थीं लेकिन अब वह सीट दर सीट चुनाव प्रचार कर रही हैं. 2019 में उन्होंने 22 रैलियां की थीं, इस बार उनकी 40 से ज्यादा सभाओं की तैयारी है.
कैडर को एकजुट रखने की कोशिश
दलित वोटरों को साधने के लिए मायावती ने आकाश आनंद को दलित बाहुल्य सीटों पर भेजा. टिकट बंटवारे में बामसेफ और कोआर्डिनेटर्स से बातचीत कर उम्मीदवारों का चयन किया. इसके अलावा कांशीराम की तर्ज पर गांव-गांव कैडर कैंप के जरिए दलित वोटरों को एकजुट करने की कोशिश की.