Opinion: सरकारी अस्पताल में कॉटन की कमी तो आदित्य को नहीं चढ़ पाया प्लास्टर, जिम्मेदार कौन?
Advertisement
trendingNow12188797

Opinion: सरकारी अस्पताल में कॉटन की कमी तो आदित्य को नहीं चढ़ पाया प्लास्टर, जिम्मेदार कौन?

Delhi Hospital Negligence: दिल्ली में सस्ते इलाज के दावों पर एक बार फिर सवाल उठे हैं. यहां एक अस्पताल में बच्चे के हाथ पर प्लास्टर इसलिए नहीं चढ़ाया गया क्योंकि इमरजेंसी वार्ड में कॉटन नहीं था.

Opinion: सरकारी अस्पताल में कॉटन की कमी तो आदित्य को नहीं चढ़ पाया प्लास्टर, जिम्मेदार कौन?

Aditya Broken Hand Tragedy: सस्ते और मुफ्त इलाज के नाम पर देश में हजारों करोड़ रुपये हर साल खर्च होते हैं. लेकिन कई बार ऐसे केस सामने आते हैं, जिनसे लगता है कि आम लोग आज भी इन सुविधाओं से दूर हैं. इतनी कोशिशों के बाद भी सरकारी अस्पतालों के हालात सुधर नहीं रहे हैं. दावे तो किए जाते हैं कि सरकारी अस्पताल में हर तरह के डॉक्टर हैं, दवाएं हैं. मेडिकल के लिए हर जरूरी सामान है, लेकिन तब सोचने को हम फिर मजबूर हो जाते हैं कि जब दिल्ली में एक 8 साल के बच्चे को हाथ टूटने के बाद सरकारी अस्पताल से सिर्फ इसलिए लौटा दिया जाता है क्योंकि हॉस्पिटल में कॉटन नहीं था. और उसको प्लास्टर नहीं चढ़ाया जा सका. इतना ही नहीं जब वह दूसरे सरकारी अस्पताल गया तो उससे कहा गया कि डॉक्टर साहब नहीं है. बच्चा दर्द से कराहता रहा. आखिरकार उसे प्राइवेट हॉस्पिटल ले जाया और रात साढ़े 12 बजे प्लास्टर चढ़ सका.

दर्द से कराहते बच्चे का गुनहगार कौन?

अब सवाल उठता है कि हाथ टूटने के बाद बच्चे के मामले में हुई लापरवाही का जिम्मेदार कौन है? अस्पताल प्रशासन पल्ला झाड़ रहा है कि कॉटन तो स्टोर में था लेकिन वह शायद इमरजेंसी वार्ड तक नहीं पहुंच सका, इसलिए ये गलतफहमी हो गई. TOI की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हेडगेवार हॉस्पिटल के एडिशनल मेडिकल सुपरिटेंडेंट मृत्युंजय कुमार ने बताया कि इमरजेंसी वार्ड और स्टोर में कुछ मिसकम्युनिकेशन था. कॉटन तो स्टोर में था.

ये भी पढ़ें- पैसा म्यूचुअल फंड में, गुरुग्राम में ऑफिस स्पेस...राहुल गांधी ने बताई अपनी प्रॉपर्टी

डॉक्टर क्यों नहीं थे मौजूद?

वहीं, चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय के प्रशासन ने कहा कि हमारे वहां हड्डियों के दो डॉक्टर हैं. वह सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक रहते हैं. डॉक्टर टाइम बाउंड हैं. हमने दिल्ली सरकार और स्टाफ रखने की रिक्वेस्ट की हुई है. अब सवाल है कि अगर कोई मरीज इमरजेंसी हालत में 4 बजे के बाद आता है तो उसके लिए कोई व्यवस्था क्यों नहीं है.

कॉटन की कमी से जूझता अस्पताल?

गौरतलब है कि कड़कड़डूमा के MCD प्राइमरी स्कूल की क्लास 2 में पढ़ने वाले 8 साल के आदित्य का खेलते वक्त हाथ टूट गया था. आदित्य के पिता जो सिक्योरिटी गार्ड के तौर पर नौकरी करते हैं. वह खबर मिलते ही आए और आदित्य को डॉक्टर हेडगेवार आरोग्य संस्थान ले गए. इमरजेंसी वार्ड में आदित्य को ले गए. लेकिन वहां कोई इंतजाम नहीं था. अस्पताल ने आदित्य को रेफर कर दिया और कारण बताया कि इमरजेंसी वार्ड में कॉटन नहीं है.

ये भी पढ़ें- संजय सिंह की रिहाई से डिफेंस मोड में क्यों दिख रही BJP? किस आशंका से घबरा रही पार्टी

प्राइवेट हॉस्पिटल में चढ़वाना पड़ा प्लास्टर

इसके बाद आदित्य को चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय में ले जाया गया. हॉस्पिटल मैनेजमेंट का दावा है कि आदित्य को शाम साढ़े 5 बजे हॉस्पिटल में लाया गया था. तब तक डॉक्टर जा चुके थे. फिर थक हारकर और दर्द से कराहते आदित्य को एक प्राइवेट हॉस्पिटल ले जाया गया. जहां आधी रात साढ़े 12 बजे आदित्य के हाथ पर प्लास्टर चढ़ाया गया.

आदित्य के पिता एक सिक्योरिटी गार्ड हैं. वह 15 हजार रुपये हर महीने की नौकरी करते हैं. प्राइवेट हॉस्पिटल में आदित्य के हाथ पर प्लास्टर चढ़वाने में उनके 13 हजार रुपये खर्च हो गए. सरकारी हॉस्पिटल को लेकर बड़े-बड़े दावों के बाद भी जब आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को प्राइवेट हॉस्पिटल में ही महंगा इलाज कराना पड़े तो इसका जिम्मेदार कौन है?

TAGS

Trending news