DNA: चाबहार डील पर क्या US की दबंगई के आगे झुक जाएगा भारत? पहले भी दे चुका है ऐसी धौंस का जवाब
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DNA: चाबहार डील पर क्या US की दबंगई के आगे झुक जाएगा भारत? पहले भी दे चुका है ऐसी धौंस का जवाब

India Iran Chabahar Deal: भारत और ईरान के बीच चाबहार पर हुई डील से चीन- पाकिस्तान का परेशान होना तो समझ आता है लेकिन अमेरिका इस मामले में बिना वजह चौधरी बनकर बीच में आ गया है. लेकिन भारत उसके विरोध को भाव देने के मूड में नहीं है.

 

DNA: चाबहार डील पर क्या US की दबंगई के आगे झुक जाएगा भारत? पहले भी दे चुका है ऐसी धौंस का जवाब

Iran Chabahar Deal and America Reaction: भारत और ईरान के बीच कल एक ऐतिहासिक डील हुई. ये डील चाबहार पोर्ट को लेकर थी. डील के तहत वर्ष 2034 तक चाबहार पोर्ट का पूरा मैनेजमेंट भारत के पास होगा. ऐसा पहली बार है जब भारत देश के बाहर किसी पोर्ट का 100 Percent मैनेजमेंट संभालेगा. वैसे तो चाबहार पोर्ट की डील भारत और ईरान दो देशों के बीच का निजी मामला है. इस डील से दोनों देशों के हित पूरे हो रहे हैं. लेकिन इस डील से अमेरिका, चीन और पाकिस्तान को मिर्ची लग गई है.

अमेरिका क्यों हुआ डील से परेशान

पाकिस्तान और चीन का बेचैन होना तो समझ आता है, क्योंकि चाबहार पोर्ट को पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट की काट माना जा रहा है. वजह ये कि ग्वादर पोर्ट को चीन बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट के तहत विकसित कर रहा है. लेकिन अमेरिका की बेचैनी समझ से बाहर है.

भारत के चाबहार पोर्ट का मैनेजमेंट संभालने से अमेरिका पर कोई नेगेटिव असर नहीं पड़ेगा, ना ही भारत इस पोर्ट के जरिये कुछ ऐसा करने वाला है जो अमेरिका के हितों के खिलाफ हो. फिर भी इस सीन में अमेरिका जबरदस्ती आ गया है और धमकी वाले लहजे में प्रतिबंधों की बात करने लगा है.

चिढ़ में भारत को दे डाली धमकी

अमेरिका की भारत को ये धमकी चिढ़ से ज्यादा कुछ नहीं है और इनका भारत पर कोई खास असर नहीं पड़ने वाला. ऐसा क्यों है हम आगे बतायेंगे, पहले आपको चाबहार डील के बारे में बताते हैं.

डील के तहत भारतीय कंपनी India Ports Global Limited यानी IPGL चाबहार पोर्ट में 120 मिलियन डॉलर यानी करीब 1000 करोड़ रुपये का निवेश करेगी. इस निवेश के अलावा चाबहार पोर्ट के लिए 250 मिलियन डॉलर यानी करीब 2000 करोड़ रुपये की अलग से मदद की जायेगी.

दुनिया में भारत का बढ़ेगा व्यापार

इस तरह चाबहार पोर्ट को लेकर डील करीब 3000 करोड़ रुपये की हो जायेगी. इससे भारत को दुनिया में अपना व्यापार बढ़ाने में मदद मिलेगी. इससे भारत को ना सिर्फ व्यापार बढ़ाने में मदद मिलेगी, बल्कि चीन और पाकिस्तान पर रणनीतिक बढ़त भी भारत हासिल करेगा.

पहले अगर भारत को कोई माल अफगानिस्तान भेजना होता था, तो पाकिस्तान के रास्ते माल भेजा जाता था. सीमा विवाद की वजह से कई बार दिक्कतों का सामान करना पड़ता था. अब चाबहार पोर्ट के जरिये अफगानिस्तान के लिए नया व्यापारिक रास्ता मिलेगा. भारत चाबहार पोर्ट के रास्ते ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस और मध्य यूरोप के साथ सीधे व्यापार कर सकता है.

भारत इन देशों से गैस और तेल भी चाबहार पोर्ट के रास्ते ला सकता है. मतलब ये कि भारत ने अपने हितों को ध्यान में रखकर इस डील को फाइनल किया है. लेकिन पाकिस्तान, चीन के साथ साथ अमेरिका को भी ईरान-भारत की चाबहार डील चुभ रही है.

अमेरिका ने क्यों लगा रखा है ईरान पर बैन?

भारत-ईरान के बीच इस डील से अमेरिका को मिर्ची क्यों लगी है, अब आप उसे समझिये. दरअसल, अमेरिका ईरान पर सभी तरह के व्यापार प्रतिबंध लगा चुका है. अमेरिका ने अपने सहयोगी देशों को भी ईरान की मदद करने से रोक रखा है. ईरान पर प्रतिबंध लगाने के पीछे अमेरिका का तर्क है कि ईरान में मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है. ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम जारी रखे हुए है. ईरान आतंकी संगठनों को समर्थन देता आया है. 

भारत पर नहीं चलता अमेरिका का जोर

ऐसे में ईरान के साथ डील से बेचैन अमेरिका ने भारत को प्रतिबंधों की बेड़ियों में बांधने की धमकी दी, लेकिन जब भारत की बात आती है तो अमेरिका की ये बेड़ियां कमजोर पड़ जाती हैं. मार्च 2022 में अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाया, कि भारत रूस से तेल खऱीदना बंद करे. प्रतिबंध लगाने की धमकी दी, लेकिन ऐसा नहीं कर सका.

वर्ष 2018 में रूस से S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदा, तब भी अमेरिका ने प्रतिबंध लगाने की बात कही थी, लेकिन फिर शांत हो गया. अब भारत ने अपने हितों को देखते हुए चाबहार डील की है, तो अमेरिका चिढ़ गया है. लेकिन इस चिढ़ को प्रतिबंधों में तब्दील करना इतना आसान नहीं है.

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