तू अपनी आवाज़ में गुम है मैं अपनी आवाज़ में चुप, दोनों बीच खड़ी है दुनिया आईना-ए-अल्फ़ाज़ में चुप.
हिज्र करते या कोई वस्ल गुज़ारा करते, हम बहर-हाल बसर ख़्वाब तुम्हारा करते.
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए, अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए.
मैं ये किस के नाम लिक्खूँ जो अलम गुज़र रहे हैं, मिरे शहर जल रहे हैं मिरे लोग मर रहे हैं.