Masik Kalashtami 2024: कालाष्टमी की पूजा के दौरान करें शिव प्रिय भैरव स्तुति, जीवन के संकट हो जाएंगे खत्म
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Masik Kalashtami 2024: कालाष्टमी की पूजा के दौरान करें शिव प्रिय भैरव स्तुति, जीवन के संकट हो जाएंगे खत्म

Kalashtami 2024: हिन्दू पंचांग के अनुसार हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी का व्रत रखा जाता है. इस दिन काल भैरव देव की विधि विधान से पूजा की जाती है. ये दिन तंत्र मंत्र के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. 

Masik Kalashtami 2024: कालाष्टमी की पूजा के दौरान करें शिव प्रिय भैरव स्तुति, जीवन के संकट हो जाएंगे खत्म

Masik Kalashtami 2024: हिन्दू पंचांग के अनुसार हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी का व्रत रखा जाता है. इस दिन काल भैरव देव की विधि विधान से पूजा की जाती है. ये दिन तंत्र मंत्र के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. जिस व्यक्ति से कालभैरव प्रसन्न हो कर रहते हैं उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. 

 

आज है कालाष्टमी व्रत
वैदिक पंचांग के अनुसार, कालाष्टमी का पर्व चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 1 अप्रैल को रात 9 बजकर 9 मिनट पर होगी और समाप्ति अगले दिन यानी कल 2 अप्रैल दिन मंगलवार को रात 8 बजकर 8 मिनट पर होगी. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कालाष्टमी के दिन काल भैरव की पूजा रात में की जाती है इसलिए कालाष्टमी का पर्व आज यानी 1 अप्रैल को मनाया जा रहा है. आज रात आप काल भैरव की विधि विधान से पूजा कर सकते हैं.

 

कालाष्टमी पर करें ये पाठ

कालाष्टमी की पूजा के दौरान काल भैरव स्तुति का पाठ जरूर करना चाहिए. ऐसा करने से नकारात्मकता दूर होती है और भगवान शिव और उनके कल भैरव रूप की कृपा मिलती है. यहां पढें

 

काल भैरव स्तुति (Kaal Bhairav Stuti Lyrics)

यं यं यं यक्षरूपं दशदिशिविदितं भूमिकम्पायमानं। 
सं सं संहारमूर्तिं शिरमुकुटजटाशेखरं चन्द्रबिम्बम्।।
दं दं दं दीर्घकायं विकृतनखमुखं चोर्ध्वरोमं करालं। 
पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
रं रं रं रक्तवर्णं कटिकटिततनुं तीक्ष्णदंष्ट्राकरालं। 
घं घं घं घोषघोषं घ घ घ घ घटितं घर्घरं घोरनादम्।।
कं कं कं कालपाशं धृकधृकधृकितं ज्वालितं कामदेहं। 
तं तं तं दिव्यदेहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
लं लं लं लं वदन्तं ल ल ल ल ललितं दीर्घजिह्वाकरालं। 
धुं धुं धुं धूम्रवर्णं स्फुटविकटमुखं भास्करं भीमरूपम्।।
रुं रुं रुं रुण्डमालं रवितमनियतं ताम्रनेत्रं करालं। 
नं नं नं नग्नभूषं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
वं वं वं वायुवेगं नतजनसदयं ब्रह्मपारं परं तं। 
खं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवननिलयं भास्करं भीमरूपम्।।
चं चं चं चं चलित्वा चलचलचलितं चालितं भूमिचक्रं। 
मं मं मं मायिरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
शं शं शं शङ्खहस्तं शशिकरधवलं मोक्षसंपूर्णतेजं। 
मं मं मं मं महान्तं कुलमकुलकुलं मन्त्रगुप्तं सुनित्यम्।।
यं यं यं भूतनाथं किलिकिलिकिलितं बालकेलिप्रधानं। 
अं अं अं अन्तरिक्षं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं कालकालं करालं। 
क्षं क्षं क्षं क्षिप्रवेगं दहदहदहनं तप्तसन्दीप्यमानम्।।
हौं हौं हौंकारनादं प्रकटितगहनं गर्जितैर्भूमिकम्पं। 
बं बं बं बाललीलं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
सं सं सं सिद्धियोगं सकलगुणमखं देवदेवं प्रसन्नं। 
पं पं पं पद्मनाभं हरिहरमयनं चन्द्रसूर्याग्निनेत्रम्।।
ऐं ऐं ऐश्वर्यनाथं सततभयहरं पूर्वदेवस्वरूपं। 
रौं रौं रौं रौद्ररूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
हं हं हं हंसयानं हपितकलहकं मुक्तयोगाट्टहासं। 
धं धं धं नेत्ररूपं शिरमुकुटजटाबन्धबन्धाग्रहस्तम्।।
टं टं टं टङ्कारनादं त्रिदशलटलटं कामवर्गापहारं। 
भृं भृं भृं भूतनाथं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
इत्येवं कामयुक्तं प्रपठति नियतं भैरवस्याष्टकं यो। 
निर्विघ्नं दुःखनाशं सुरभयहरणं डाकिनीशाकिनीनाम्।।
नश्येद्धिव्याघ्रसर्पौ हुतवहसलिले राज्यशंसस्य शून्यं। 
सर्वा नश्यन्ति दूरं विपद इति भृशं चिन्तनात्सर्वसिद्धिम् ।।
भैरवस्याष्टकमिदं षण्मासं यः पठेन्नरः।। 
स याति परमं स्थानं यत्र देवो महेश्वरः ।।

 

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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