"अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं" अल्लामा इकबाल के शेर

इल्म

इल्म में भी सुरूर है लेकिन ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं

जन्नत

ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को कि मैं आप का सामना चाहता हूँ

सितारे

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं

गैर

कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है बात कहने की नहीं तू भी तो हरजाई है

गैर

कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है बात कहने की नहीं तू भी तो हरजाई है

इश्क

इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में या तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर

आजाद

तिरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी

बातिल

बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ नहीं हम सौ बार कर चुका है तू इम्तिहाँ हमारा

वतन

वतन की फ़िक्र कर नादाँ मुसीबत आने वाली है तिरी बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में

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