इल्म में भी सुरूर है लेकिन ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को कि मैं आप का सामना चाहता हूँ
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है बात कहने की नहीं तू भी तो हरजाई है
कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है बात कहने की नहीं तू भी तो हरजाई है
इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में या तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर
तिरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी
बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ नहीं हम सौ बार कर चुका है तू इम्तिहाँ हमारा
वतन की फ़िक्र कर नादाँ मुसीबत आने वाली है तिरी बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में