अलीगढ़ के ताला मजदूरों की बेबसी बयां करती है, फिल्मकार मसरूर खान की किताब ‘सिटी ऑन फायर'
Advertisement
trendingNow,recommendedStories0/zeesalaam/zeesalaam2025553

अलीगढ़ के ताला मजदूरों की बेबसी बयां करती है, फिल्मकार मसरूर खान की किताब ‘सिटी ऑन फायर'

किताब अलीगढ़ के पुराने शहर के ताला बनाने वाले मजदूरों के बारे में भी बात करती है. जेयाद मसरूर ने कहा है कि उन्होंने देखा है कि ताला बनाने वाले मजदूर हमेशा काले रंग से ढके रहते थे, ग्रीस का रंग उनके शरीर और चेहरे को ढक देता था. जिससे मजदूरों को पहचान पाना बेहद मुश्किल हो जाता था. 

अलीगढ़ के ताला मजदूरों की बेबसी बयां करती है, फिल्मकार मसरूर खान की किताब ‘सिटी ऑन फायर'

Lock Makers: ताला मज़दूरों और उनके रहन-सहन का ‘सिटी ऑन फायर ए बॉयहुड इन अलीगढ़’ में दिलचस्प झरोखा पेश किया गया है. इस किताब में बौना डाकू का भी किस्सा है, बौना डाकू को अलीगढ़ के क्राइम इतिहास के सबसे अमीर डाकू के नाम से जाना जाता है. इस किताब को लेखक, पत्रकार, और डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता जेयाद मसरूर खान ने लिखा है. मसरूर पुराने अलीगढ़ के एक मुस्लिम बहुल इलाके में पले-बढ़े हैं. 1990 के दशक में अलीगढ़ गहन राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक कायापलट के दौर से गुजर रहा था. खान ने इस किताब में उसी दौर को दोहराया है. 

किताब में बौना डाकू के कई किस्सें?
जेयाद मसरूर ने किताब में उस वक्त के बौना डाकू के दौर को याद किया है. 20वीं सदी की शुरुआत में कैसे बौना डाकू अलीगढ़ की गड्ढों वाली सड़कों पर घूमता था. ‘हार्पर कॉलिन्स इंडिया’ में छपी पुस्तक में कई पुरानी कहानियों, बातचीत और रिपोर्ताज के जरिए से खान ने अलीगढ़ के जनजीवन से लोगों को रूबरू कराया है. पुस्तक में कहा गया है कि बौना डाकू को अलीगढ़ के क्राइम इतिहास का सबसे अमीर डाकू माना जाता है. वह इतना अमीर था कि उसने अलिगढ़ के बाहरी एरिया में अपना निजी किला बनाया था. इसके अंदर आने के लिए गुफाओं के समान बेहद पतले रास्ते थे जिसमें केवल बौना डाकू ही जा सकता था. किसी ने भी उसे पकड़ने के लिए इन गुफाओं में घुसने की जुर्रत नहीं की थी.

अलीगढ़ के ताला मजदूरों का जिक्र
किताब अलीगढ़ के पुराने शहर के ताला बनाने वाले मजदूरों के बारे में भी बात करती है. जेयाद मसरूर ने कहा है कि उन्होंने देखा है कि ताला बनाने वाले मजदूर हमेशा काले रंग से ढके रहते थे, ग्रीस का रंग उनके शरीर और चेहरे को ढक देता था. जिससे मजदूरों को पहचान पाना बेहद मुश्किल हो जाता था, इस किताब में अलीगढ़ की घनी बसावट के झरोखा भी पेश किए गए है.

इसमें लिखा गया है कि नई ऊपर कोट में हर गली में तीन तरह के घर होते हैं, गरीब घर, अमीर घर और मंजिलें. किताब में कहा गया है, ‘‘गरीब घर मजदूरों के हैं और उनकी दीवारें उस दिन का इंतजार कर रही हैं जब मालिक पेंट करवाएंगा. खिड़कियों पर लगे पर्दे पुरानी चादर या जूट की बोरी  के होते हैं. सीढ़ियां पतली और अंधेरी हैं.’’ इसमें कहा गया है, ‘‘इसके विपरीत अमीर घर इतने ऊंचे होते हैं कि उन्हें नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है. ये मुट्ठी भर व्यापारियों या फैक्टरी मालिकों के हैं, ये घर खुद ही अपनी अमीरी दिखाते हैं.

Trending news