Elon Musk ने जिस शख्स को लगाई ह्यूमन चिप, उसमें हुआ 'केमिकल लोचा'
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Elon Musk ने जिस शख्स को लगाई ह्यूमन चिप, उसमें हुआ 'केमिकल लोचा'

Neuralink Brain Chip Problem: न्यूरालिंक ने दिमाग में लगाई जाने वाली चिप का पहला ट्रायल 29 साल के Noland Arbaugh पर किया गया था. लेकिन, कुछ हफ्तों बाद ही ये चिप Noland के दिमाग से अलग होने लगी. इससे दिमाग की तरंगों को पढ़ने की क्षमता कम हो गई. 

Elon Musk

Elon Musk: एलन मस्क की कंपनी Neuralink को दिमाग में लगाई जाने वाली चिप को लेकर बड़ा झटका लगा है. इस चिप को पैरेलाइज्ड (लकवा ग्रस्त) लोगों की मदद के लिए बनाया गया था, ताकि वे दिमाग के संकेतों से कंप्यूटर चला सकें. इस टेक्नॉलॉजी का पहला ट्रायल 29 साल के Noland Arbaugh पर किया गया था. लेकिन, कुछ हफ्तों बाद ही ये चिप Noland के दिमाग से अलग होने लगी. इससे दिमाग की तरंगों को पढ़ने की क्षमता कम हो गई. ये परेशानी कंपनी द्वारा चिप की कार्यक्षमता दिखाने के कुछ ही हफ्तों बाद सामने आई है.

जनवरी में लगाई गई थी चिप 

Noland Arbaugh आठ साल पहले एक हादसे में गर्दन के नीचे के हिस्से को हिला नहीं पाते हैं. उन्हें दुनिया में सबसे पहले जनवरी में Neuralink की ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (BCI) चिप लगाई गई थी. इस चिप में 64 तार होते हैं जिनमें 1024 इलेक्ट्रोड लगे होते हैं. ये इलेक्ट्रोड दिमाग की तरंगों को पकड़कर उन्हें कंप्यूटर को चलाने के लिए आदेशों में बदल देते हैं. लेकिन, कुछ समय बाद इन तारों में से कुछ Noland Arbaugh के दिमाग से बाहर निकलने लगीं, जिससे काम करने वाले इलेक्ट्रोड कम हो गए. 

इस समस्या को दूर करने के लिए Neuralink कंपनी ने बताया कि उन्होंने संकेतों को पकड़ने वाली तकनीक को ज्यादा संवेदनशील बना दिया है. साथ ही कंप्यूटर कमांड में बदलने और यूजर इंटरफेस को भी बेहतर बनाया गया है. कंपनी का कहना है कि इससे नोलैंड की कार्यक्षमता में तेजी से सुधार हुआ है. हालांकि, चिप में थोड़ी खराबी जरूर आई थी, लेकिन ये नोलैंड के लिए खतरनाक नहीं थी. फिलहाल चिप को निकालने की बजाय उसे ठीक ही रखा गया है. 

Neuralink की ये कोशिशें साल 2016 से शुरू हुई थीं. उन्हें पिछले साल अमेरिका की दवा और खाने की चीजों को मंजूरी देने वाली संस्था से इंसानों पर परीक्षण की अनुमति मिली थी. नोलैंड आर्बग इस टेक्नोलॉजी को लेकर काफी सकारात्मक हैं. उन्होंने मार्च में एक लाइव स्ट्रीम में बताया कि अब वो बिना किसी परेशानी के लेटे हुए मनोरंजन कर सकते हैं, ये तब तक चलता है जब तक उनकी चिप रिचार्ज नहीं हो जाती. न्यूरालिंक की दिमागी तरंगों से कंप्यूटर चलाने की कोशिश पूरी दुनिया का ध्यान खींच रही है. यह टेक्नोलॉजी काफी फायदेमंद हो सकती है लेकिन इसे असल जिंदगी में इस्तेमाल करने में अभी कई चुनौतियां हैं.

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